बेदर
कर के बेदर्द ज़माने के हवाले मुझ को
कर के बेदर्द ज़माने के हवाले मुझ को
भूल जाना न मेरे चाहने वाले मुझ को
मैं बदल जाऊँ न तेरी ही तरह आख़िर कार,
अब भी है वक़्त मेरे दोस्त मना ले मुझ को
और कुछ देर में हो जाएगा सूरज का ज़वाल
और कुछ देर का मेहमाँ हूँ सता ले मुझ को
कुछ भी पर्वा नहीं गैरों के सितम की लेकिन
बे रुख़ी तेरी कहीं मार न डाले मुझ को
अब तो रह रह के पुकारेगा तुझे तेरा ज़मीर
याद आऊँगा तुझे, लाख भुला ले मुझ को
इस से पहले कि चुरा ले कोई तितली ख़ुशबू
शाख से तोड़ के ज़ुल्फों में सजा ले मुझ को
तेरा एह्सान कि दुनिया को बनाया तू ने
इक करम और कि दुनिया से उठा ले मुझ क
भूल जाना न मेरे चाहने वाले मुझ को
मैं बदल जाऊँ न तेरी ही तरह आख़िर कार,
अब भी है वक़्त मेरे दोस्त मना ले मुझ को
और कुछ देर में हो जाएगा सूरज का ज़वाल
और कुछ देर का मेहमाँ हूँ सता ले मुझ को
कुछ भी पर्वा नहीं गैरों के सितम की लेकिन
बे रुख़ी तेरी कहीं मार न डाले मुझ को
अब तो रह रह के पुकारेगा तुझे तेरा ज़मीर
याद आऊँगा तुझे, लाख भुला ले मुझ को
इस से पहले कि चुरा ले कोई तितली ख़ुशबू
शाख से तोड़ के ज़ुल्फों में सजा ले मुझ को
तेरा एह्सान कि दुनिया को बनाया तू ने
इक करम और कि दुनिया से उठा ले मुझ क
1 comment:
कमाल की गज़ल है ।
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